Thursday, August 31, 2006

मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था

Today I was listening one of the song from film Haqeekat. This is one of the briliant song by Rafi, and alos my all time favourite.


मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था,
के वो रोक लेगी मना लेगी मुझको ।

हवाओं में लहराता आता था दामन,
के दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको ।

कदम ऐसे अंदाज़ से उठ रहे थे,
की आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको ।

मगर उसने रोका
न उसने मनाया,
न दामन ही पकड़ा
न मुझको बिठाया,
न आवाज़ ही दी,
न वापस बुलाया

मैं आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहाँ तक के उससे जुदा हो गया मैं ...
जुदा हो गया मैं ...
जुदा हो गया मैं ...

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